ज़िंदगानी

कुछ मैं ज़िद्दी 
कुछ वो मजबूर 
सही तो दोनों हैं 
फिर शायद वक़्त का है कसूर 

चाह बस एक है - साथ 
बस मायने का फेर है
पर ये कैसी चाह है 
जिसमे सब ढेर हैं 

वो कहते रहे, 
२८ साल का प्यार है 
हम कैसे समझाएं उन्हें
हमारा भी २७ साल का इंतज़ार है 

९ महीने या  ९ दिन
खोने का दर्द बराबर है
यकीन ना आये तो जांच लो
क्या दर्द का भी कोई माप है

अब ऐसा एक मोड़ आया है 
की बीत रही जवानी है
शुरुआत तो मुहब्बत थी
पर अंत ज़िंदगानी है 

Comments

Popular posts from this blog

You are not alone!

Truth

Reflection